श्री गणेशाय नमः। श्रीगायत्री नमः। श्री गुरुवे नमः।
जगतजननी माता दुर्गा के नवम रूप श्री सिद्धिदात्री महात्म्य ।
माता दुर्गा की आराधना करने पर धर्म अर्थ काम मोक्ष का वरदान सुलभ हो जाता है।
अश्विन शुक्लपक्ष नवमी तिथि के दिन माता के नवम रूप श्रीसिद्धिदात्री की आराधना होती है। माता यह रूप में हर प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान करती हैं। साधक तपस्यारत अवस्था में अग्रसर होते हुए माता के प्रथम रूप को प्रसन्न करते हुए माता के नौंवे रूप से सिद्धि का वरदान प्राप्त करते हैं।
देवी दुर्गा की तपस्या वैदिक युगों से चली आ रही है। दुर्गा की शक्ति ऊर्जा से समस्त ब्रह्मांड की रचना की गई है। यहाँ शिव पुरूष हैं एवं दुर्गा प्रकृति हैं। रामायण तथा महाभारत में देवी दुर्गा की पूजा का उल्लेख है। भगवान श्री राम लंका पर चढ़ाई करने से माता दुर्गा से वरदान प्राप्त किया था। अर्जुन भी कुरुक्षेत्र के मैदान में युद्ध से पहले श्री कृष्ण के आदेश पर श्रीदुर्गा का आह्वान किया एवं वरदान प्राप्त किया था। श्री दुर्गा दुर्गति नाशिनी है एवं जगतधात्री भी हैं। सृष्टि उनकी शक्ति से चलती है। शास्त्र में नवरात्रि के माध्यम से नव दिन एवं रात्रि माता दुर्गा की पूजा व उपासना का विधि विधान बताया गया है। देवी दुर्गा हर दुखों का नाश करके भक्तों को वरदान प्रदान करने वाली देवी है। नवरात्रि में उनकी पूजा श्रद्धा, भक्ति एवं आस्था से की जाती है। देवी के नव रूप नव प्रकार की सकारात्मक शक्तियाँ प्रदान करता हैं। निष्ठा सहित उनकी आराधना करने से हर एक प्राणियों का उद्धार हो जाता है।
नवरात्रि के प्रकार
प्रति वर्ष में चार नवरात्रि का पालन किया जाता है। इन चारों में दो गुप्त नवरात्रि हैं जो प्रधानतः साधक सम्प्रदाय के लोगों में प्रचलित है एवं दो नवरात्रि मुख्यत सभी लोग पालन करते हैं।
चैत्र नव रात्रि
पहली नवरात्रि चैत्र प्रतिपदा से शुभारंभ होकर रामनवमी में पूर्ण होकर दशमी में समापन होती है।
शरद नव रात्रि
शरद ऋतु आश्विन मास शुक्लपक्ष में द्वितीय नवरात्र का पालन किया जाता है। नौ दिन में माता के नव रूप की आराधना पूर्ण कर शुक्ल विजया दशमी को समापन किया जाता है।
महात्म्य
नवरात्रि के नवम दिवस पर श्रीसिद्धिदात्री माता की आराधना की जाती है।
माता यह रूप में भक्त को अष्टसिद्धि प्रदान करता हैं। अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व जैसी सिद्धियां भक्तों को प्रदान करने के लिए माता सदा तत्पर हैं।
साधनाओं के अनुसार देवी माता भक्तों को धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष प्रदान करती हैं।
यह रूप में माता चतुर्भुजा हैं एवं कमल पर विराजित हैं। माता के हाथों में शंख, चक्र,गदा एवं पद्म सुशोभित है।
स्तुति मंत्र
मंत्र: या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
मंत्र
वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
सिद्धगंधर्वयक्षाद्यै:, असुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात्, सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।
सर्वकार्य सिद्धि हेतु नवरूप स्तोत्र
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति च अष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।
फलश्रुति
माता दुर्गा की आराधना से श्रद्धालु एवं भक्तों के सारे कष्टों का निवारण अनायास ही हो जाता है यह मानना चाहिए। जगतजननी माता अपने संतानों के लिए सदा तत्पर हैं, हमें केवल उनको सच्ची भावना से पुकारना है।
जय माँ दुर्गा। ॐ नमः शिवाय। हरे कृष्ण हरे राम।
शारदीय दुर्गापूजा एवं नौ रात्रि 2021, जाने तिथि एवं समय।
माता के और रूपों को जाने
माता शैलपुत्री
माता ब्रह्मचारिणी
माता चंद्रघंटा
माता कुष्मांड
स्कंदमाता
माता कात्यानी
माता कालरात्रि
माता श्री महागौरी