रुद्राक्ष के विभिन्न प्रकार एवं शिव पुराण के अनुसार इसका महात्म्य। Rudraksha & it’s Greatness

रुद्राक्ष 

रुद्राक्ष

शिवपुराण के विद्वेश्वर संहिता अध्याय २३ में वर्णन है, महाभाग व्यास शिष्य श्री सुतदेव महर्षिगण से कहते हैं की – शिव नाम, विभूति (भस्म) एवं रुद्राक्ष- यह तीन त्रिवेणी के समान परम् पुण्यमय है। जिस स्थान पर यह तीन शुभमय वस्तु उपलब्ध है, वहाँ उनके दर्शन मात्र से ही मनुष्य को त्रिवेणी स्नान का फल लाभ होता है। परमेश्वर शिव के नाम को ‘गंगा’, विभूति को ‘यमुना’ तथा रुद्राक्ष को ‘सरस्वती’ कहा जाता है। यह तीनों का संयुक्त होने पर त्रिवेणी बनती हैं एवं समस्त पाप नाशकारी है।

शिवपुराण के अनुसार श्रीसुतदेव रुद्राक्ष का महात्म्य श्री सौनक मुनि को कहते हैं, रुद्राक्ष स्वयं रुद्रदेव का प्रतीक है। परमेश्वर शिवशंकर रुद्राक्ष में निवास करते हैं। रुद्राक्ष शिव के अत्यंत प्रिय है एवं परम् पवित्र है। इसके दर्शन, स्पर्श एवं जप करने मात्र से ही सभी पापों का खंडन होता है तथा करोड़ों दान का पुण्य प्राप्त होता है। माता पार्वती को रुद्राक्ष महात्म्य ज्ञान कहते समय परमेश्वर शिव कहते है ‘ रुद्राक्ष उनका लिंग स्वरूप है‘।  जहाँ पर भी रुद्राक्ष की पूजा होती है वहाँ से श्रीलक्ष्मी दूर नहीं जा पाती है। उस स्थान से सारे उपद्रव दूर होते है तथा वहाँ के निवासियों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। परमेश्वर शिव अनेक प्रकार के रुद्राक्ष का ज्ञान माता पार्वती को प्रदान करते हैं जिसके माद्यम से भोग अथवा मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है।
(शिवपुराण वि.२५/४७)

मुखी

रुद्राक्ष पर उभरे हुए नैसर्गिक धारी को ही मुखी कहा जाता  है। रुद्राक्ष के अंदर में हर धारी के नीचे अंदर से प्राकृतिक छोटी पतली सुरंग या कक्ष जैसा है जिसे मुखी कहा जाता है। रुद्राक्ष के अंदर के भाग में जितने सुरंग होंगे ठीक उतनी धारियाँ ऊपर के परत पर उभर कर आती है।ध्यान रहें, रुद्राक्ष को माला की तरह पिरोने के लिए जो  छिद्र दिखाई पड़ता हैं वो भिन्न है। छिद्र और मुखी का कोई मेल नहीं है। मुखी प्राकृतिक एवं नैसर्गिक रूप से अपने आप बनता है जिससे हर रुद्राक्ष का वर्गीकरण एक दूसरे से भिन्न हो जाता है।

रुद्राक्ष के प्रकार एवं विवरण

एक मुखी रुद्राक्ष

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  • स्वामी ग्रह- सूर्य
  • अधिपति देवता- शिव
  • मन्त्र- ॐ ह्रीं नमः

यह रुद्राक्ष पर केवल एक नैसर्गिक धारी होने पर इसे एक मुखी रुद्राक्ष कहा जाता है। यह रुद्राक्ष बहुत ही दुर्लभ है तथा बहुत कम पाया जाता है। नेपाल प्रदेश में पाए जाने वाले एक मुखी रुद्राक्ष सबसे अधिक उच्च श्रेणी के होते है परन्तु यह अत्यंत दुर्लभ है।

भारत में एक मुखी रुद्राक्ष हिमालय की पाददेश हरिद्वार स्थान पर एवं रामेश्वरम अंचल में सुलभ है। गोलाकार रुद्राक्ष का मान सर्वदा उच्च है, परन्तु हरिद्वार का एक मुखी रुद्राक्ष सम्पूर्ण गोलाकार न होकर भी अनियमित गोलाकार जैसा है। वहीं रामेश्वरम का एक मुखी रुद्राक्ष काजू अथवा अर्ध चंद्र आकार का होता है। गोलाकार रुद्राक्ष सर्वदा ही श्रेष्ठ है, इस तरह से इसका मूल्य रामेश्वरम की एक मुखी रुद्राक्ष से अधिक है। नेपाल का एक मुखी रुद्राक्ष बहुमूल्य है तथा मिलना अत्यन्त दुर्लभ है। एक मुखी रुद्राक्ष परमेश्वर महादेव स्वयं हैं। यह ब्रह्महत्या जैसे पापों का खंडन करता है।

एकमुखी रुद्राक्ष सर्वसिद्धि दायक, सभी मनोकामना पूर्ण करनेवाला सर्वोत्तम रुद्राक्ष है। एक मुखी रुद्राक्ष सुलभ न होने पर चौदह मुखी रुद्राक्ष का धारण करना चाहिए। इन दोनों रुद्राक्षों का प्रभाव एक जैसा ही है।


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दो मुखी रुद्राक्ष

  • स्वामी ग्रह- चन्द्र
  • अधिपति देवता- अर्धनारीश्वर
  • मन्त्र- ॐ नमः

यह रुद्राक्ष पर दो नैसर्गिक धारियाँ होती है। यह रुद्राक्ष देवी एवं देवता का प्रतीक हैं। इस पर अर्धनारीश्वर का अधिपत्य है। यह हर प्रकार के पापों का खंडन करने में सक्षम है। यह रुद्राक्ष को धारण करने पर गृह में कष्ट क्लेश का निवारण होता है। दामपत्य सुख, विश्वास, निष्ठा, एकाग्रता, विद्या-बुद्धि, व्यवसाय में सफलता, इत्यादि प्रदान करता है यह रुद्राक्ष।

तीन मुखी रुद्राक्ष

  • स्वामी ग्रह- मंगल
  • अधिपति देवता- अग्निदेव
  • मन्त्र- ॐ क्लीं नमः 

यह रुद्राक्ष पर नैसर्गिक तीन धारियाँ होती है। यह रुद्राक्ष स्वयं अग्नि का स्वरूप है तथा इस पर अग्निदेव का अधिपत्य है, जो नारी हत्या जैसी पापों का खंडन करता है। इसमें त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर की शक्तियाँ विद्यमान है। यह त्रिगुण सत-तम-रज को दर्शाता है तथा इन्हें संतुलित रखता है। साधक इसे धारण कर के तथा तपस्या के द्वारा भूत-वर्तमान-भविष्य जैसे तीनों काल को जान सकता है। यह रुद्राक्ष रचनात्मक तथा सकारात्मक ऊर्जाओं को विकसित करने में सहायक है। विद्यार्थियों के लिए यह अत्यन्त लाभदायक है।

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चार मुखी रुद्राक्ष

4 mukhi
  • स्वामी ग्रह- बुध
  • अधिपति देवता- ब्रह्मा
  • मन्त्र- ॐ ह्रीं नमः

इस पर चार नैसर्गिक धारियाँ विद्यमान है। यह ब्रह्मा का स्वरूप है तथा इस पर ब्रह्मदेव का अधिपत्य है। यह चार वेदों को दर्शाता है तथा धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष दायक भी है। यह आरोग्य वर्धक, ज्ञान वर्धक, सृष्टि, रचना, स्मृति, सकारात्मक ऊर्जा दायक है। मानसिक तनाव, भूलने की आदत, उद्वेग इत्यदि से मुक्ति दिलाता है यह रुद्राक्ष। इसके धारण से श्रीवृद्धि एवं परमारोग्य की प्राप्ति होती है। नर हत्या जैसे पापों का खंडन करता है यह रुद्राक्ष।

पांच मुखी रुद्राक्ष

  • स्वामी ग्रह- बृहस्पति
  • अधिपति देवता- कालाग्नि रुद्रदेव
  • मन्त्र- ॐ ह्रीं नमः

यह रुद्राक्ष पर पांच नैसर्गिक धारियाँ होती है। सभी प्रकार के रुद्राक्षों में साधारणतः यह सबसे अधिक मात्रा में सदा सुलभ है। यह स्वयं कालाग्नि रुद्र का स्वरूप है इसलिए यह रुद्राक्ष को परमब्रह्म स्वरूप माना जाता है। परमेश्वर शिव का पंचानन स्वरूप है यह पंचमुखी रुद्राक्ष। इसकी पूजा करने पर आधात्मिक विकास, ईश्वर चेतना में वृद्धि होती है। हर प्रकार के सांसारिक दुख, कष्ट, क्लेश, दरिद्रता का नाश करता है यह पंचमुखी। यह मुक्ति प्रदानकारी तथा मनोवांछित फल प्रदानकारी है। यह रुद्राक्ष निकृष्ट अभोज्य भोजन सेवन तथा विपथगामी गमन से हुए पापों का खंडन करता है।

छः मुखी रुद्राक्ष

  • स्वामी ग्रह- शुक्र
  • अधिपति देवता- कार्तिक
  • मन्त्र- ॐ ह्रीं हूं नमः

यह रुद्राक्ष पर नैसर्गिक छ धारियाँ है। यह स्कंददेव अर्थात देवसेनापति कार्तिक का प्रतीक है। षष्ठ मुखी में भगवान कार्तिक की शक्ति समाहित हैं। यह तेज, पराक्रम, निर्भय, विद्या, बुद्धि, ज्ञान, कर्मठ, कठिन मनोबल, शारीरिक बल, रोग प्रतिरोधक बल जैसी शक्तियों को प्रदान करता है। यह काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह, मात्सर्य जैसे दोषों को जड़ से समाप्त करता है। इसके धारण से व्यक्ति में रचना शक्ति, कला, शिल्प, ज्योतिष विद्या, शास्त्र आलोचना की रुचि में वृद्धि होती है। यह ब्रह्महत्या जैसे भयंकर पापों का खंडन करता है।

सात मुखी रुद्राक्ष

  • स्वामी ग्रह- शनि देव
  • अधिपति देवता- श्री लक्ष्मी, अनंग
  • मन्त्र- ॐ हूं नमः

यह रुद्राक्ष पर सात धारियाँ होती है। यह अनंग स्वरूप है।  सप्तमुखी सप्त ऋषियों को दर्शाता है। यह देवी का सात माता रूप ब्राह्मणी, वैष्णवी, माहेश्वरी, इंद्राणी, वाराही, कौमारी, नृसिंघी का प्रबल सकारात्मक तेज समाहित है। सूर्य तथा सप्तऋषि का अधिपत्य है यह रुद्राक्ष पर। यह रुद्राक्ष पर श्रीलक्ष्मी का आशीर्वाद है। समृद्धि, ज्ञानधन का स्रोत है यह सात मुखी रुद्राक्ष। यहाँ कामदेव ही अनंग है जो वंश की वृद्धि, स्त्री प्रीति, स्वास्थ्य, आरोग्य, धनाढ्य, कला प्रेम, वाकसिद्धि कौशल आदि यह सप्तमुखी रुद्राक्ष के द्वारा प्रदान करते हैं। यह चोरी इत्यादि से अर्जित पापों का खंडन करता है।

आठ मुखी रुद्राक्ष

  • स्वामी ग्रह- राहु
  • अधिपति देवता- गणेश
  • मन्त्र- ॐ हूं नमः

यह रुद्राक्ष पर आठ नैसर्गिक धारियाँ विद्यमान है। शिवपुराण के अनुसार अष्टमूर्ति भैरव का स्वरूप है। यह प्रथम पूज्य देव एवं विघ्नहर्ता श्रीगणेश का प्रतीक है। यह रुद्राक्ष अग्नि, पृथ्वी, वायु, जल, आकाश, मन, बुद्धि, अहंकार जैसी अष्ट प्रकृति को नियंत्रित करता है। इसके धारण करने पर श्रीगणेश की कृपा बनी रहती है। अष्टमुखी रिद्धि सिद्धि प्रदान करने में सक्षम है। व्यवसाय, लेख कला, उच्च शिक्षा में सफलता प्राप्त होती है। अष्टमुखी धन-सम्पद वृद्धि कारक भी है। मान्यता है कि अष्टमुखी के शुभ प्रभाव से कोर्ट कचहरी के मामलों में सफलता मिलती है। इसके धारण करने पर अनाज की चोरी, व्यवसाय में हेराफेरी, स्वर्ण में मिलावट, दुष्ट स्त्री गमन, गुरु पत्नी पर कुदृष्टि इत्यादि से किये हुए पापों का खंडन होता है।

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नौ मुखी रुद्राक्ष

  • स्वामी ग्रह- केतु
  • अधिपति देवता- दुर्गा
  • मन्त्र- ॐ ह्रीं हूं नमः

यह रुद्राक्ष पर नौ नैसर्गिक धारियाँ विद्यमान है। यह श्रीभैरव एवं कपिल मुनि का प्रतीक हैं।  इसकी अधिस्ठात्री देवी माहेश्वरी दुर्गा हैं। यह रुद्राक्ष उनके नौरूपों को भी दर्शाता है। शक्ति के उपासकों लिए लिए यह रुद्राक्ष विशेष फलदायी है। साधक के मन एवं बुद्धि में आस्था एवं भक्ति का मानसिक स्रोत बनाये रखता है। यह रुद्राक्ष नव ग्रहों के ऊर्जाओं को संतुलित करता है।इसके धारण करने पर आत्मविश्वास, साहस, ठहराव, आत्मनिर्भर, सहन क्षमता में वृद्धि होती है तथा मृत्युभय दूर हो जाता है। गर्भनाश, ब्रह्महत्या जैसे कठिन पापों से मुक्ति दिलाती है।

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दस मुखी रुद्राक्ष

  • स्वामी ग्रह- नहीं है
  • अधिपति देवता- श्रीविष्णु
  • मन्त्र- ॐ ह्रीं नमः

यह रुद्राक्ष पर दस नैसर्गिक धारियाँ विद्यमान है। यह भगवान श्रीविष्णु का प्रतीक है। इस पर दसों दिशाओं का अधिपत्य है तथा विष्णु के दस अवतारों का प्रतीक है। यह रुद्राक्ष पर दस दिक्पाल जैसे इंद्र, अग्नि, यम, नैऋत्य, वरुण, वायु, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत का आशीर्वाद है। दस मुखी का धारण करने पर नव ग्रहों के सकारात्मक ऊर्जा को प्राप्त किया जा सकता है। यह रुद्राक्ष लोक यश, समाज में प्रतिष्ठा, राजकार्य सम्मान, आध्यात्मिक चेतना जैसी संपादन में वृद्धि करती है।यह ब्रह्मराक्षस, प्रेत, पिशाच, ग्रहों से बाधा तथा दुष्ट प्रभावों का खंडन करता है।

ग्यारह मुखी रुद्राक्ष

  • स्वामी ग्रह- मंगल
  • अधिपति देवता- श्रीहनुमान
  • मन्त्र- ॐ ह्रीं हूं नमः

यह रुद्राक्ष पर ग्यारह नैसर्गिक धारियाँ विद्यमान है। यह ग्यारह रुद्रों का प्रतीक हैं। इसके धारण मात्र ही हज़ार अश्वमेध यज्ञ, हज़ार गो दान के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। इसे शिखा में धारण करना चाहिए। एक हज़ार अश्वमेध यज्ञ, सौ हज़ार गोदान के समान फल प्रदान करता है। देवराज इंद्र यह रुद्राक्ष के देव हैं। इसमें हनुमान जी की ऊर्जा है जो कोई भी बुरी शक्ति को नाश करने में सहायक है। इसे धारण करने पर बुद्धि बल, चतुराई, पराक्रम, मानसिक बल, शाररिक बल में वृद्धि होती है। यह रुद्राक्ष स्त्रियों को धारण करना अत्यंत शुभ फलदायी है। सुंदर दाम्पत्य जीवन, दीर्घायु, सौभाग्य तथा भग्योदय का कारक है यह ग्यारहमुखी।

बारह मुखी रुद्राक्ष

  • स्वामी ग्रह- सूर्य
  • अधिपति देवता- सूर्य
  • मन्त्र- ॐ क्रों क्षों रौं नमः 

यह रुद्राक्ष पर बारह नैसर्गिक धारियाँ विद्यमान है। बारहों आदित्य यह रुद्राक्ष के देवता हैं। इस तरह से इसमें सूर्य का तेज, सृजन क्षमता शक्ति विद्यमान है। यह धारण करने पर बारह आदित्यों का आशीष प्राप्त होता हैं तथा गोमेध एवं अश्वमेध यज्ञों का फल प्राप्त होता हैं। यह रुद्राक्षु शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों को भी दर्शाता है। यह रुद्राक्ष पहनने पर सुख, शांति, समृद्धि, धन, वैभव, ज्ञान की वृद्धि होती है। यह रुद्राक्ष में सूर्य का तेज समाहित है इसलिए यह राजतंत्र एवं शासन से जुड़े पद की प्राप्ति करवाने में सक्षम है। विवाह से जुड़े दोषों का खंडन करता है। इसे कान में धारण करना सर्बोत्तम है।

तेरह मुखी रुद्राक्ष

  • स्वामी ग्रह- शुक्र
  • अधिपति देवता-इंद्र
  • मन्त्र- ॐ ह्रीं नमः

यह रुद्राक्ष पर तेरह नैसर्गिक धारियाँ विद्यमान है। इसके देवता श्री कामदेव हैं। यह रुद्राक्ष को इंद्रदेव का स्वरूप माना जाता है। यह रुद्राक्ष का धारण करने पर भौतिक सुख शांति प्राप्त होती है। सांसारिक जीवन में सुख, शांति तथा कर्म क्षेत्र में उन्नति एवं सफलता प्राप्त होती है।यह धारण करने पर स्कन्दकुमार की तरह सौभाग्य एवं अर्थ-काम की प्राप्ति होती है। संतान प्राप्ति, धन प्राप्ति के लिए इसका धारण करना चाहिए। मित्रहन्ता का पाप से मुक्ति दिलाती है यह रुद्राक्ष।

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चौदह मुखी रुद्राक्ष

  • स्वामी ग्रह- शनि
  • अधिपति देवता- शिव
  • मन्त्र- ॐ नमः

यह रुद्राक्ष पर चौदह नैसर्गिक धारियाँ विद्यमान है। यह रुद्राक्ष स्वयं रुद्रदेव के आँखों से प्रकट हुआ।मस्तक पर यह रुद्राक्ष को धारण करने पर शरीर को शिव समान कांति तथा उच्च मान सम्मान प्राप्त होता है। इसे सिर पर धारण करना उत्तम है। यह रुद्राक्ष शिव स्वयं धारण किये हुए हैं। यह एक दुर्लभ रुद्राक्ष है।  इसका धारण करने पर आध्यात्मिक चेतना सुलभ हो जाता है। इसकी अलौकिक ऊर्जा धारक के इंद्रियों को सूक्ष्म रूप से शक्ति प्रदान करती है जिससे ज्ञान एवं बुद्धि का विकास होता है एवं धारक को भविष्य का पूर्वाभास होने लगता है। उचित नियम एवं संयम का पालन करने पर धारक को यह रुद्राक्ष धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष तथा सिद्धि प्राप्त करता है। शिवपुराण के अनुसार यह परम् शिवरूप को मस्तक पर धारण करना सर्वोत्तम है।

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