पापांकुशा एकादशी में श्रीकृष्ण भक्तों पर लगाएं अंकुश, करें पापों का खंडन। Papankusha Ekadashi 2021

श्री गणेशाय नमः। श्री गायत्री नमः। श्री गुरुवे नमः। हरे कृष्ण हरे राम।

पापांकुशा एकादशी में श्रीकृष्ण भक्तों पर लगाएं अंकुश, करें पापों का खंडन। 

Papankusha Ekadashi 2021

पापांकुशा एकादशी (अश्विन शुक्ल एकादशी)

हर माह में पड़ने वाले सभी व्रतों में एकादशी व्रत का महत्व सबसे प्रधान माना जाता है। सर्वेश्वर भगवान श्री विष्णु को प्रसन्न करने हेतु एकादशी व्रत सदा ही सर्वोत्तम है। अश्विन मास शुक्ल पक्ष दशहरा के दूसरे दिन में पड़ने वाली एकादशी को पापांकुशा एकादशी कहा जाता है। भगवान की अशेष अनुकंपा एवं कृपा से मनुष्यों द्वारा जाने अनजाने में किये हुए पाप अथवा जीवन मरण चक्र में कर्मों द्वारा अर्जित पापों का खंडन करती हैं यह एकादशी।

पापांकुशा एकादशी का विशेष लाभ

पाप पर अंकुश अर्थात जिस प्रकार से हठी मदमस्त हाथी को नुकीले अंकुश द्वारा नियंत्रित तथा अनुशासित किया जाता है ठीक उसी प्रकार से यह एकादशी का पालन करने पर स्वयं भगवान पापी के पापों पर अंकुश लगा देते हैं। पापी पाप करने से बचता है तथा सद्कार्य में लिप्त हो कर पुण्य का भागीदार बनता है तथा भगवान की कृपा प्राप्त करता है।

जो व्यक्ति का जीवन पाप में लिप्त है, उनका कर्म पाप से जुड़ा हो, असामाजिक अवचेतन में मदमस्त हैं, ऐसे व्यक्तियों को भगवान की कृपा प्राप्त करने हेतु यह पापांकुशा एकादशी का व्रत विशेष रूप से पालन करना चाहिए। यह पालन से उनका मन शुद्ध होगा एवं पाप कार्यों से दूर होकर सदाचारी रहेंगे।

निष्ठा से एकादशी का पालन करने से पापों का खंडन होता है एवं स्वयं भगवान प्रसन्न होकर कृपा दान करते हैं।

पापांकुशा एकादशी कब है? (Papankusha Ekadashi, October 2021)

पंचांग के अनुसार 16 October 2021, शनिवार को अश्विन मास की शुक्ल पक्ष पर एकादशी तिथि का पालन है। 

पापांकुशा एकादशी महात्म्य 16 October 2021 (Papankusha Ekadashi 2021)

मान्यता के अनुसार एक समय पर एक निषाद व्याध पंछी, जानवरों का शिकार करते हुए अपनों का भरण पोषण करता था। समय काल चक्र के अनुसार मृत्यु की घड़ी पास आने पर यमराज के भेजे हुए मृत्युदूत सामने आ गए एवं बताया कि उसकी मृत्यु का समय समीप ही है। यह सुनकर व्याध को भय हुआ एवं मृत्यु तथा पाप से बचने हेतु वह भागता हुआ अंगिरा ऋषि के कुटीर पर पोहुँच गया। ऋषि ने सब सुनकर व्याध को पापांकुशा एकादशी का पालन करने के लिए आदेश दिया। व्याध ने श्रद्धा, भक्ति सहित यह एकादशी का पालन किया तथा उसे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त हुई। उसके निकृष्ट कर्म से अर्जित पापों का खंडन हुआ तथा हरि कृपा से उसे वैकुंठ की प्राप्ति हुई।  

भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों के वनवास के समय पर सम्राट युधिष्ठिर सहित सभी पांडव भाइयों को एकादशी की महिमा से ज्ञात करवाया था।

भरत मिलाप

यह एकादशी की तिथि पर भ्राता श्री भरत एवं भगवान श्रीरामचन्द्र का मिलाप हुआ था। 

पापांकुशा एकादशी की व्रत विधि

उदित एकादशी की तिथि के दिन भोर में निद्रा से उठकर दैनिन्दन प्रातः कार्यों को जल्द संपूर्ण करना चाहिए। स्नान करने के बाद शुद्ध वस्त्रों को धारण करें। शुभ कार्यों में, देव कार्यों में धोती पहनना उत्तम है।

उपवास का पालन करें।

इस दिन भगवान श्री विष्णु अथवा भगवान श्री कृष्णा की पूजा करें। घी का दीपक जलाएं, सफेद अथवा पीले पुष्प से पूजा करें। दूध से बनी मिठाई, पीली मिठाई का भोग लगाएं। 

विष्णु नाम, कृष्ण नाम का पाठ करें।

एकादशी तिथि पर उपवास एवं आहार का नियम

सामर्थ्य अनुसार निर्जला अथवा केवल जल का पान अथवा एकादशी फल, मिष्ठान्न, दूध का सेवन करें। 

आहार पर निषेध

अनाज, शस्य, सब्ज़ियाँ, माँस इत्यादि  का सेवन निषेध है। तामसिक भोजन एवं पेय का निषेध है।

पापांकुशा एकादशी मुहूर्त (Papankusha Ekadashi October 2021)

एकादशी तिथि प्रारम्भ- 15 October 202, शुक्रवार, 06:04 pm।

एकादशी तिथि समाप्त- 16 October 2021, शनिवार, 05:39 pm।

व्रतपारण (व्रत सम्पूर्ण ) 17 October 202, 06:30 am से 08:00 am।

सर्वसाधारण पूजा विधि

  • ब्रह्मुहूर्त में सय्या त्याग कर नित्य कार्य तथा स्नान आदि से निवृत होकर के शुद्ध वस्त्र धारण करना है।
  • सूर्योदय होने पर गृह मंदिर के कपाट को खोले।
  • भगवान के लिए पंच उपचार का आयोजन करें। गंगाजल, सुगंध, सफेद पुष्प, तुलसी पत्र, धूप, घी के दीप, मिष्ठान्न, पानीय जल का आयोजन करें।
  • गंगा जल से भगवान का अभिषेक करें।
  • सुगंध, तुलसी पत्र, सफेद पुष्प, धूप, दिप, मिष्ठान्न, पानीय जल निवेदन करें।
  • सभी मिष्ठान्न तथा भोग पर तुलसी पत्र डालें।
  • माता लक्ष्मी की पूजा करें।
  • भगवान की आरती करें, “हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे” यह महा मन्त्र का जप भी 108 बार करें।
  • विष्णुस्त्रोत्र, सोड़षनाम आदि पाठ करें।

विशेष: तामसिक भोजन का आहार न करें।

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