नारियली (नारली) श्रावणी पूर्णिमा व्रत
श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि श्रावणी पूर्णिमा को राखी पूर्णिमा एवं नारली अथवा नारियली पूर्णिमा के नाम से प्रसिद्धि प्राप्ति है।
भारत के सामुद्रिक तटीय क्षेत्रों में नारियल या नारली पूर्णिमा का व्रत मनाया जाता है।
यह तिथि पर सूर्यदेव स्वराशि सिंह राशि पर स्थित रहते हैं एवं चन्द्र मकर राशि पर स्थित रहते हैं।
सिंह राशि पर सूर्य को पूर्ण बल प्राप्त होता है। यह दिन से वर्षा ऋतु नियंत्रित होने लगती है। जल पर नौका चलाने के लिए समय अनुकूल हो जाता है। तूफानी संकट बंद होकर समुद्र में अनुकूल वातावरण होने लगता है।
समुद्रदेव अथवा समुद्र के अधिपति स्वामी श्री वरुण देव की पूजा आराधना की जाती है। उनसे समुद्र में तथा जलतट पर कार्य करने के लिए अनुमति ली जाती है। प्रार्थना की जाती है कि परिवार के जो व्यक्ति समुद्र में जाएं उन्हें वरुण देव परिश्रम का फल प्रदान करें एवं सकुशल सुरक्षित वापस घर भेज दें। श्री वरुण देव की कृपा से तट पर रहने वाले लोग एवं समुद्र के जल पर कार्य करने वाले लोगों के गृह में अन्न जल का व्यवस्था सदा पूर्ण रहें। कठिन वर्षा अथवा वायु की प्रलय स्थिति में रक्षा हेतु देव से प्रार्थना करते हैं।
यह दिन विधिवत नारियल की पूजा करके श्री वरुण देव को भेंट किया जाता है।
इन कारणों से सनातन धर्म में नारियल फल का सर्वोच्च महत्वता प्राप्त है।
🌼नारियल ही श्रीफल है जिसे ऋषि विश्वामित्र ने योगबल से प्रकट किया। यह फल के माध्यम से भक्त को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति सुगम होती है। श्रीफल से श्री अर्थात माता लक्ष्मी प्रसन्न होती है। नारियल के तीन नयन ब्रह्मा, विष्णु, महेश त्रिदेव को दर्शाते हैं। श्रीफल विद्या, बुद्धि एवं ज्ञान का एक रूप है जो निवेदन करने पर श्रीगणेश, श्रीलक्ष्मी, श्री सरस्वती को प्रसन्न कर के मनचाहा वरदान प्राप्त किया जा सकता है🌼
यह श्रीफल के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं अनुसार नारियल को महर्षि विश्वामित्र मुनि ने प्रकट किया था। अन्य मान्यता अनुसार कलश श्री गणेश हैं तो, नारियल देव सेनापति श्री स्कन्द देव (श्री कार्तिक) हैं। अतः नारियल से जुड़े कई मान्यताएं हैं। इस तरह नारियल कोई भी पूजा में अथवा शुभ कार्य में पुण्यफल तथा आयु एवं आरोग्य प्राप्त कराने में सहायक है।
नारियली पूर्णिमा के कुछ विशेष महत्व
यह पूर्णिमा तिथि में भक्तगण एवं स्त्रियाँ तथा परिवार वर्ग समुद्र में नारियल को भेंट चढ़ाकर अपने परिवार वर्ग के लिए आयु तथा आरोग्य का प्रार्थना करते हैं।
यह व्रत भारत के पश्चिम प्रान्त अर्थात महाराष्ट्र प्रदेश में अधिक सुप्रचलित है। दक्षिण के प्रदेशों में भी यह व्रत का पालन किया जाता है। मछवारे सम्प्रदाय के लोग यह व्रत को प्रति वर्ष बड़े धूम धाम से मनाते हैं।
पूर्णिमा तिथि के लिए समय
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ समय
21.08.2021
संध्या 07:02 pm
पूर्णिमा तिथि समाप्त समय
22.08.2021
संध्या 05:33 pm
- पूर्णिमा व्रत की पूजा 21.08.2021, समय 07:02 pm से 22.08.2021, समय 05:00 pm तक सम्पूर्ण की जा सकती है।
- पूर्णिमा की पूजा संध्या काल में करना सर्वश्रेष्ठ है। अन्य समय भी उत्तम है।
श्रावण पूर्णिमा कब है
२२ अगस्त २०२१
श्रावण पूर्णिमा कितने बजे से कब तक है ?
रक्षा बंधन कब है ?
२२ अगस्त २०२१