माता दुर्गा की आराधना करने पर धर्म अर्थ काम मोक्ष का वरदान सुलभ हो जाता है।
सनातन हिन्दू धर्म में शास्त्र अनुसार देवी माता दुर्गा शक्ति की देवी है। दुर्गा की शक्ति ऊर्जा से समस्त ब्रह्मांड की रचना की गई है। यहाँ शिव पुरूष हैं एवं दुर्गा प्रकृति हैं। माता दुर्गा दुर्गति नाशिनी है एवं जगतधात्री भी हैं। शास्त्र में नवरात्रि के माध्यम से नव दिन एवं रात्रि माता दुर्गा की पूजा व उपासना का विधि विधान बताया गया है। देवी दुर्गा हर दुखों का नाश करके भक्तों को वरदान प्रदान करने वाली देवी है। नवरात्रि में उनकी पूजा श्रद्धा, भक्ति एवं आस्था से की जाती है। देवी के नव रूप नव प्रकार की सकारात्मक शक्तियाँ प्रदान करता हैं। निष्ठा सहित उनकी आराधना करने से हर एक प्राणियों का उद्धार हो जाता है।
प्रति वर्ष में चार नवरात्रि का पालन किया जाता है। इन चारों में दो गुप्त नवरात्रि हैं जो प्रधानतः साधक सम्प्रदाय के लोगों में प्रचलित है एवं दो नवरात्रि मुख्यत सभी लोग पालन करते हैं।
पहली नवरात्रि चैत्र प्रतिपदा से शुभारंभ होकर रामनवमी में पूर्ण होकर दशमी में समापन होती है।
शरद ऋतु अश्विन मास शुक्लपक्ष में द्वितीय नवरात्र का पालन किया जाता है। नौ दिन में माता के नव रूप की आराधना पूर्ण कर शुक्ल विजया दशमी को समापन किया जाता है।
माता दुर्गा की आराधना से श्रद्धालु एवं भक्तों के सारे कष्टों का निवारण अनायास ही हो जाता है यह मानना चाहिए। जगतजननी माता अपने संतानों के लिए सदा तत्पर हैं, हमें केवल उनको सच्ची भावना से पुकारना है।
। माता शैलपुत्री ।
यहाँ श्रीमाता हिमालय राज की पुत्री हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने पर इनका नाम शैलपुत्री हुआ। यह श्रीरूप में माता चतुर्भुजा हैं एव दायीं हाथों में त्रिशूल एवं वरमुद्रा है तथा बायीं हाथों में पुष्प व डमरू लेकर वृषभ नंदी वाहन पर सवार हैं। यहाँ माता प्रसन्न हैं एवं मन्द मन्द मुस्कुरा रही हैं।
महात्म्य
पुराण अनुसार माता शैलपुत्री पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष की पुत्री एवं भगवान शिव की पत्नी देवी सती थीं। पिता द्वारा किया गया पति(महादेव) का अपमान देवी सहन न कर सकीं तथा उन्होंने यज्ञ की अग्नि में अपने प्राणों की आहुति दे दी। प्रजापति दक्ष ने महादेव को देव यज्ञ में आमंत्रित न करने के कारण यह विवाद शुरू हुआ। सती की मृत्यु के पश्चात अंत में महादेव ने वीरभद्र को प्रकट कर प्रजापति दक्ष का शिरच्छेद करवा दिया एवं यज्ञ को नष्ट कर दिया।
तत्पश्चात देवताओं की आह्वान पर शक्ति रूपिणी माता सती का पुनर्जन्म हिमराज हिमालय के यहाँ पार्वती के रूप में हुआ एवं भगवान शिव से उनका पुनर्विवाह रचाया गया।
माता के अधीन योग चक्र
माता शैलपुत्री के अधीन में “मूलाधार चक्र” हैं।
सर्व सिद्धि पाप्त करने हेतु यह श्रीमन्त्र का जप करें।
श्रीमाता का स्तुति मन्त्र
या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
श्रीमाता का मूलमन्त्र
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम् ।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ।।
जय माँ दुर्गा। ॐ नमः शिवाय। हरे कृष्ण हरे राम।
दुर्गापूजा एवं नौ रात्री 2021, समय एवं तिथि
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