माता चंद्रघंटा, जगतजननी माता दुर्गा का तृतीय रूप एवं महात्म्य। Mata Chandraghanta

श्री गणेशाय नमः। श्रीगायत्री नमः। श्री गुरुवे नमः।

जगतजननी माता दुर्गा का तृतीय रूप चंद्रघंटा महात्म्य

अश्विन शुक्लपक्ष तृतिया तिथि के दिन माता के तीसरी रूप श्रीचन्द्रघंटा की आराधना होती है। श्रीमाता का यह पावन रूप कोटि सूर्यप्रकाश के समान उज्ज्वल है। श्रीमहादेव को स्वामी रूप में वरण करने हेतु माता पार्वती ललिता रूप में उनके समक्ष आयी। श्रीमाता यह रूप में कमलनयना, कुंचित केश, स्वर्ण, मणी, मुक्ता आदि मुकुट व अलंकारों से सुसज्जित हैं एवं उनका कर्ण कुंडल घण्टे जैसा है। 

सनातन हिन्दू धर्म में शास्त्र अनुसार देवी माता दुर्गा शक्ति की देवी है। दुर्गा की शक्ति ऊर्जा से समस्त ब्रह्मांड की रचना की गई है। यहाँ शिव पुरूष हैं एवं दुर्गा प्रकृति हैं। माता दुर्गा दुर्गति नाशिनी है एवं जगतधात्री भी हैं। शास्त्र में नवरात्रि के माध्यम से नव दिन एवं रात्रि माता दुर्गा की पूजा व उपासना का विधि विधान बताया गया है। देवी दुर्गा हर दुखों का नाश करके भक्तों को वरदान प्रदान करने वाली देवी है। नवरात्रि में उनकी पूजा श्रद्धा, भक्ति एवं आस्था से की जाती है। देवी के नव रूप नव प्रकार की सकारात्मक शक्तियाँ प्रदान करता हैं। निष्ठा सहित उनकी आराधना करने से हर एक प्राणियों का उद्धार हो जाता है। 

नवरात्रि के प्रकार

प्रति वर्ष में चार नवरात्रि का पालन किया जाता है। इन चारों में दो गुप्त नवरात्रि हैं जो प्रधानतः साधक सम्प्रदाय के लोगों में प्रचलित है एवं दो नवरात्रि मुख्यत सभी लोग पालन करते हैं। 

चैत्र नव रात्रि

पहली नवरात्रि चैत्र प्रतिपदा से शुभारंभ होकर रामनवमी में पूर्ण होकर दशमी में समापन होती है।

शरद नव रात्रि

शरद ऋतु आश्विन मास शुक्लपक्ष में द्वितीय नवरात्र का पालन किया जाता है। नौ दिन में माता के नव रूप की आराधना पूर्ण कर शुक्ल विजया दशमी को समापन किया जाता है।

माता दुर्गा की आराधना से श्रद्धालु एवं भक्तों के सारे कष्टों का निवारण अनायास ही हो जाता है यह मानना चाहिए। जगतजननी माता अपने संतानों के लिए सदा तत्पर हैं, हमें केवल उनको सच्ची भावना से पुकारना है। 

मंत्र 

पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता ।

प्रसादं तनुते मह्यां चन्द्रघण्टेति विश्रुता ॥

महात्म्य

माता का यह तृतीय श्रीरूप को चंद्रघंटा के नाम से पूजा की जाती है। माता के शिरमुकुट पर चन्द्रदेव अर्ध्यचंद्र घंटे के जैसे शोभा वर्धन कर रहें हैं, इसलिए माता का नाम चंद्रघंटा है। तपस्वी के ‘मणिपूर’ चक्र माता के अधीन हैं। यह रूप में माता दशभुजा हैं एवं परम कल्याणकारी हैं। माता सिंह पर आरूढ़ हैं एवं उनके हाथ विभिन्न दिव्य अस्त्रों से सुस्सजित हैं।

शुक्ल पक्ष तृतिया तिथि की पूजा माता को सदा ही प्रिय है।

स्तुति मंत्र :-

या देवी सर्वभू‍तेषु चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

सर्वकार्य सिद्धि हेतु नवरूप स्तोत्र

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति च अष्टमम् ।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।

फलश्रुति

माता दुर्गा की आराधना करने पर धर्म अर्थ काम मोक्ष का वरदान सुलभ हो जाता है।

जय माँ दुर्गा। ॐ नमः शिवाय। हरे कृष्ण हरे राम।

शारदीय दुर्गापूजा एवं नौ रात्रि 2021, जाने तिथि एवं समय।

माता के और रूपों को जाने
माता शैलपुत्री
माता ब्रह्मचारिणी

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

close
Scroll to Top