श्री गणेशाय नमः। श्रीगायत्री नमः। श्री गुरुवे नमः।
दुर्गतिनाशिनी माता दुर्गा का द्वितीय रूप ब्रह्मचारिणी एवं महात्म्य ।
माता दुर्गा की आराधना करने पर धर्म अर्थ काम मोक्ष का वरदान सुलभ हो जाता है।
ब्रह्मचारिणी अर्थात माता स्वयं यह रूप में परम्ब्रह्म का आचरण करनेवाली। समग्र ब्रह्मांड, पूरा विश्व ही उनमें व्याप्त है। श्रीमाता ही परमब्रह्म स्वरूपा हैं, आनंदमयी हैं, ममतामयी जगतजननी हैं एवं सृष्टि का लालन पालन हेतु वे ब्रह्मचारिणी हैं। माता यह रूप में सभी भक्तों की अन्तरात्मा में सदा निवास करती है। साधक आराधना तथा तपस्या के माध्यम से यह शक्ति को जागृत कर उपलब्धि प्राप्त करते हैं।
सनातन हिन्दू धर्म में शास्त्र अनुसार देवी माता दुर्गा शक्ति की देवी है। दुर्गा की शक्ति ऊर्जा से समस्त ब्रह्मांड की रचना की गई है। यहाँ शिव पुरूष हैं एवं दुर्गा प्रकृति हैं। माता दुर्गा दुर्गति नाशिनी है एवं जगतधात्री भी हैं। शास्त्र में नवरात्रि के माध्यम से नव दिन एवं रात्रि माता दुर्गा की पूजा व उपासना का विधि विधान बताया गया है। देवी दुर्गा हर दुखों का नाश करके भक्तों को वरदान प्रदान करने वाली देवी है। नवरात्रि में उनकी पूजा श्रद्धा, भक्ति एवं आस्था से की जाती है। देवी के नव रूप नव प्रकार की सकारात्मक शक्तियाँ प्रदान करता हैं। निष्ठा सहित उनकी आराधना करने से हर एक प्राणियों का उद्धार हो जाता है।
नवरात्रि के प्रकार
प्रति वर्ष में चार नवरात्रि का पालन किया जाता है। इन चारों में दो गुप्त नवरात्रि हैं जो प्रधानतः साधक सम्प्रदाय के लोगों में प्रचलित है एवं दो नवरात्रि मुख्यत सभी लोग पालन करते हैं।
चैत्र नव रात्रि
पहली नवरात्रि चैत्र प्रतिपदा से शुभारंभ होकर रामनवमी में पूर्ण होकर दशमी में समापन होती है।
अश्विन नव रात्रि
शरद ऋतु अश्विन मास शुक्लपक्ष में द्वितीय नवरात्र का पालन किया जाता है। नौ दिन में माता के नव रूप की आराधना पूर्ण कर शुक्ल विजया दशमी को समापन किया जाता है।
माता दुर्गा की आराधना से श्रद्धालु एवं भक्तों के सारे कष्टों का निवारण अनायास ही हो जाता है यह मानना चाहिए। जगतजननी माता अपने संतानों के लिए सदा तत्पर हैं, हमें केवल उनको सच्ची भावना से पुकारना है।
महात्म्य
नवरात्र के द्वितीय दिन में माता ब्रह्मचारिणी की आराधना की जाएगी। परमेश्वर शिव को पति रूप में प्राप्त करने हेतु माता पार्वती ने कठोर तपस्या कर शिव को प्रसन्न करने में सफल हुई थी। इस रूप में माता तपाश्विनी है। उनकी दायीं हाथ में जपमाला है तथा बायीं हाथ में कमंडल है। माता का यह रूप शांत शीतल परम आनंदमयी है। माता यहाँ तप से तुष्ट होती है एवं सभीको तपस्या का फल स्वरूप वरदान प्रदान करतीं हैं।
स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
मूलमंत्र
दधाना करपद्माभ्याम् अक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
सर्वकार्य सिद्धि हेतु नवरूप स्तोत्र
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति च अष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।
जय माँ दुर्गा। ॐ नमः शिवाय। हरे कृष्ण हरे राम।
शारदीय दुर्गापूजा एवं नौ रात्रि 2021, जाने तिथि एवं समय।
माता के और रूपों को जाने
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माता ब्रह्मचारिणी
माता चंद्रघंटा
माता कुष्मांड