।।केतु मंत्र।।
।। वैदिक मन्त्र ।।
ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे।
समुषद्भिरजायथा:।।
।।पौराणिक मन्त्र।।
पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम्।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्॥
।।बीज मन्त्र।।
ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: केतवे नमः।
।।सामान्य मंत्र।।
ॐ कें केतवे नमः।
।।केतु गायत्री मन्त्र।।
१. ॐ पद्मपुत्राय् विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो केतु: प्रचोदयात्।।
२. ॐ अश्वाध्वजाय विद्महे शूलाहस्ताय धीमहि तन्नो केतु: प्रचोदयात।।
३. ॐ गद्दाह्स्ताय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्न: केतु: प्रचोदयात।।
।।पूजा मन्त्र।।
ॐ ह्रीँ ऐं केतवे नमः।
।।सरल मन्त्र।।
श्री केतुदेव नमः।
जप संख्या – 17000
जप समय – रात्रि
।।केतु स्तुति।।
जय जय केतु कठिन दुखहारी।
निज जन हेतु सुमंगलकारी।।
ध्वजयुत रूण्ड रूप विकराला।
घोर रौद्रतन अधमन काला।।
शिखी तारिका ग्रह बलवाना।
महा प्रताप न तेज ठिकाना।।
वान मीन महा शुभकारी।
दीजै शान्ति दया उरधारी।।