कार्तिक अमावस्या
सनातन धर्म में कार्तिक महीने की अमावस्या तिथि बहुत महत्वपूर्ण है। यह तिथि पर प्राचीन समय से ही प्रान्त एवं अंचलों के अनुसार दीपावली उत्सव, श्रीलक्ष्मी गणेश पूजा, इंद्रदेव,कुबेरदेव की पूजा, श्रीकाली माँ की पूजा की प्रथा चली आ रही है। यह अमावस्या तिथि पर संसारी, साधक तथा तपस्वी अपने अपने मनोकामना अनुसार ईश्वर से वरदान एवं सिद्धि प्राप्त करते हैं। यह तिथि भक्तों को मनचाहा ईश्वरीय वरदान प्रदान करने में सक्षम हैं।
तुष्ट करें पित्र पुरुषों को पाएं आशीर्वाद
पित्र पुरुषों के प्रिय भाजन बनने हेतु यह तिथि पर उनके लिए पूजा तथा दीपदान करना बहुत शुभ है। किसी कारणवश परिवार में कभी किसी प्रयात व्यक्ति का श्राद्ध कार्य असम्पूर्ण रह गया हो अथवा शास्त्र अनुसार मृत्युदोष लगा हो तो यह तिथि पर विधि अनुसार कर्मकांड कार्य करने पर सब दोषों का खंडन होता है, तथा प्रयात आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है ऐसा मानना चाहिए।
पित्र पुरूष किसी कारण रुष्ट हों तो सांसारिक जीवन में कष्ट क्लेश, अर्थ हानि, धन हानि, अपमृत्यु जैसी आपदाओं के सामना करना पड़ता है। इन सब को खंडन करती है यह कार्तिक अमावस्या। उचित शिष्टाचार से शास्त्र विधि अनुसार यह अमावस्या का पालन करने पर पित्र प्रसन्न होते है तथा उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। सांसारिक जीवन सदा आनंद में व्यतीत होता है ऐसा मानना चाहिए।
गणेश, लक्ष्मी व इंद्र पूजन
सिद्धि दाता गणेश, धन समृद्धि की देवी श्रीलक्ष्मी के संग वेदों के प्रधान देव श्रीइन्द्रदेव की आराधना एवं पूजन फलदायी है। यहाँ श्रीइन्द्रदेव धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष प्रदायक हैं। वे मेघ, वर्षा, जल, फूल,फसल, फल, अन्न, अनाज, धन तथा सुराज्य के अधिपति देव हैं। श्री इंद्रदेव की कृपा से अन्न-धन इत्यादि सदा पूर्ण रहता है ऐसा मानना चाहिए।
इन देव देवी की करें पूजा एवं मनचाहा वरदान पाएं
शिव पूजन, काली पूजन एवं भक्ति के लिए यह एक सर्वोत्तम तिथि है। अमावस्या तिथि में तप, साधना एवं मन्त्रों को सिद्ध किया जा सकता है (मंत्र सिद्धि हेतु जानने के लिए लिंक में क्लिक करें)।
शास्त्र अनुसार पितृदोष का खंडन, कालसर्प दोष, इत्यादि कुंडली में कई प्रकार के दोषों एवं योगों का खंडन करती है यह अमावस्या।
🌺 पञ्च देवता को स्मरण करें।
‘श्री गणेशाय नमः। श्री विष्णु नमः। श्री शिवाय नमः। श्री आदित्य नमः। श्री गौरी नमः’।
अमावस्या मुहूर्त
प्रारम्भ: | सम्पूर्ण |
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गुरुवार प्रातः 06:05 am, 04.11.2021 | गुरुवार देररात्री 02:45 am, 04.11.2021 |
(अमावस्या सम्पूर्ण अंग्रेज़ी दिनांक अनुसार 05.11.202, मध्य देर रात्रि 02:45 am)
(*स्थानीय जगह पर सूर्योदय एवं सूर्यास्त अनुसार तिथि के लिए स्थानीय पञ्चाङ्ग अथवा स्थानीय पुरोहित की सहायता लें।)
अमावस्या पालन किस दिन करना है
🌼शास्त्र अनुसार सदा उदित तिथि के दिन व्रत का पालन किया जाता है, इस तरह से अमावस्या का पालन दिनांक 04.11.2021 को होगा।
परन्तु भक्त एवं श्रद्धालु को अमावस्या की पहली तिथि के प्रारंभ समय से ही संयम एवं उचित आचार, व्यवहार तथा नियम का पालन करना चाहिए। दिनांक 05.11.2021 सूर्योदय तक नियम का पालन करना है।
दीवाली पूजा शुभ मुहूर्त
दिवाली पर श्रीगणेश लक्ष्मी पूजन प्रदोष काल में प्रारम्भ ततग संपूर्ण करना सर्वदा श्रेष्ठ है। अन्य शुभ समय भी फलदायी है।
👉आयु, आरोग्य, धन वृद्धि के लिए करें भगवान धन्वन्तरि की पूजा।
दिन एवं रात्रि का शुभ मुहूर्त
- 01:46 pm – 02:14 pm-अमृत
कुम्भ-स्थिर लग्न- गुरु होरा - 02:14 pm – 03:10 pm-अमृत
कुम्भ-स्थिर लग्न- मंगल होरा - 06:42 pm – 07:35 pm-अमृत
वृषभ -स्थिर लग्न- चन्द्र होरा
(प्रदोष काल)
- 12:22 am – 01:57 am-लाभ
सिंह- स्थिर लग्न- बुध/चन्द्र होरा)
(* मानक समय मुम्बई स्थान अनुसार।)
अमावस्या के महत्व
- कार्तिक अमावस्या प्रदोषकाल पर दीपानिता लक्ष्मी पूजन श्रेष्ठ है।
- अमावस्या की तिथि पिंडदान, पितृ तर्पण के लिए श्रेष्ठ है। यह एक अन्यतम श्रेष्ठ अमावस्या तिथि है।
- श्री महादेव का पूजन, भजन करें। अमावस्या तिथि रहते शिवलिंग पर बेलपत्र, तिल, गंगा जल चढ़ाएं।
- यह तिथि में गुरु मंत्र, इष्ट मन्त्र का जप करने पर अधिक फलदायी सिद्ध हो सकता है ऐसा मानना चाहिए।
- श्री गणपति मन्त्र, श्री लक्ष्मी के मन्त्र, श्री हनुमान चालीसा, श्री बजरंगबाण, श्री शिवस्तुति, ऋण मोचन मंत्रों, कुबेर मन्त्र, अर्गला स्तोत्र का पाठ करने से लाभ होगा यह मानना चाहिए।
- घर के द्वार पर दीप जलाएं। मंदिर में दीपदान करें।
- अमावस्या की तिथि में मंत्रों का जप करने से फल कई गुना अधिक प्राप्त होता है ऐसा मानना चाहिए। (मंत्र सिद्धि हेतु जानने के लिए क्लिक करें।)
विशेष: हम मानते हैं कि, सरकार द्वारा जारी किए हुए कोविड संक्रमण दमन हेतु नियम व शासन मर्यादा का पालन करते हुए धर्म कार्य में भाग लेना श्रेय है। अतः सुरक्षित होकर के व्रत, पूजा पालन करना श्रेयष्कर है ऐसा मानना चाहिए।
अमावस्या तिथि में पूजा विधि
- ब्रह्मुहूर्त में सय्या त्याग कर नित्य कार्य तथा स्नान आदि से निवृत होकर के शुद्ध वस्त्र धारण करना है।
- सामर्थ्य अनुसार उपवास रखें। सूर्योदय होने पर गृह मंदिर के कपाट को खोले।
- घर के मंदिर में नित्य पूजा सम्पन्न करें।
अमावस्या पर संध्या की पूजा
- श्रीगणेशादि पंचदेव, श्रीलक्ष्मी, श्रीइन्द्र के लिए पंच उपचार पूजा का आयोजन करें। गंगाजल, सुगंध, सफेद पुष्प, लाल पुष्प, कुमकुम, चावल (अक्षत), धूप, घी के दीप, मिष्ठान्न, पानीय जल का आयोजन करें।
- लाल, सफेद, अथवा पिले शुद्ध आसन पर बैठें।
- गंगा जल से आचमन इत्यादि की विधि करें।
- भूत बंधन करें। जल, पुष्प आदि को मन्त्रशुद्धि करें।
- आसन शुद्धि करें।
- गुरु पंक्ति अथवा गुरु ध्यान मन्त्र करें।
- माता सरस्वती स्मरण करें।
- माता लक्ष्मी को अर्घ्य,आचमन जल, सुगंध, स्चन्दन पुष्प, माला, धूप, दीप, नैविध्य, तांबुल, तंडुल, पानार्थ जल निवेदन करें।
- श्रीगणेश लक्ष्मी, कुलदेव अथवा देवी, गुरु एवं अन्य देव देवियों को आरती करें।
- सभी मिष्ठान्न तथा भोग पर फूल पत्र डालें।
- भगवान विष्णु अथवा श्रीकृष्ण को स्मरण करें तथा आरती करें, “हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।” यह महा मन्त्र का जप भी 108 बार करें।
- जिन्हें गुरु मंत्र प्राप्त है वे गुरु मंत्र पर जप करें।
- घर पर सभी संभव स्थानों में दिया प्रज्वलित करें।