ऋण मोचक मंगल स्तोत्र का पाठ करें एवं ऋण अथवा कर्ज़ से खुदको मुक्त पाएं। hrin mochak mangal strot

श्रीगणेशाय नमः। श्री गायत्री नमः। श्री तारा नमः। हरे कृष्ण हरे राम।

ऋण मोचक मंगल स्तोत्र का पाठ करें एवं ऋण अथवा कर्ज़ से खुदको मुक्त पाएं।

जीवन में कभी ऐसी परिस्थिति आती है जब एका एक अचानक कर्ज़ चढ़ने लगता है। आमदनी के सारे रास्ते अचानक बंद हो जाते है। इस परेशानी के समय पर ईश्वर ही हमारे सहायक होते हैं।

जीवन चक्र की कुंडली से शास्त्रज्ञ पता लगाते हैं कि यह परेशानी से छुटकारा कैसे पाया जाए। 

मंगल ग्रह भूमि, धन के  रोजगार तथा ऋण के कारक ग्रह हैं। कभी ऋण हो जाये एवं वो बढ़ता ही चला जाय तो समझना चाहिए कि जीवन चक्र में कही पर मंगलदेव की कुपित दृष्टि का आगमन हो गया है।

मंगलदेव की दशा, अंतर्दशा अथवा कुपित दृष्टि से बचने के लिए एवं उनकी सकात्मक ऊर्जा को ग्रहण करने हेतु यह ऋण मोचन मंगल स्त्रोत्र का पाठ करना बहुत ही लाभ दायक सिद्ध होगा ऐसा मानना चाहिए।

मंगलवार का पालन करना उत्तम है। संध्या तथा रात्रि को उपवास कर के प्रति मंगलवार को यह स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

शीघ्र फल लाभ हेतु संध्या काल में लाल आसान पर बैठ कर यह स्तोत्र का पाठ करना उत्तम है।

यह पाठ भगवान विष्णु, शिवलिंग, हनुमानजी अथवा माता दुर्गा के समक्ष करने पर शीघ्र ही फल प्राप्त होगा ऐसा मानना चाहिए।

।।ऋण मोचक मंगल स्त्रोत्र।।

मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः ।

स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः ॥1।।

लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः ।

धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥2।।

अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः ।

व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥3।।

एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत् ।

ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात् ॥4।।

धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम् ।

कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ॥5।।

स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः ।

न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित् ॥6।।

अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल ।

त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय ॥7।।

ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः ।

भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥8।।

अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः ।

तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात् ॥9।।

विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा ।

तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः ॥10।।

पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः ।

ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः ॥11।।

एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम् ।

महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा ॥12।।

।। इति श्रीस्कन्दपुराणे भार्गवप्रोक्तं

ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम्।।

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