माता कुष्मांड, जगतजननी माता दुर्गा का चतुर्थ रूप एवं महात्म्य। Mata Kushmand

श्री गणेशाय नमः। श्रीगायत्री नमः। श्री गुरुवे नमः।

जगतजननी माता दुर्गा का चतुर्थ रूप माता कुष्मांड महात्म्य ।

माता कुष्मांड

अश्विन शुक्लपक्ष चतुर्थी तिथि के दिन माता के चतुर्थ रूप श्रीकुष्मांड देवी की आराधना होती है। ऋग्वेद के देविसूक्त में वर्णन है कि देवी सर्वव्यापी है। रुद्र, वसु, आदित्य, इंद्र, अग्नि, विश्वदेव, मित्र, वरुण, अग्नि, त्वष्टा, पूषा, सोम आदि इन सभी में स्वयं देवी शक्ति रूप में कार्य कर रही हैं। यहाँ देवी को प्रश्न करने पर कहती हैं वे स्वयं ब्रह्मस्वरूपिणी हैं। माता शून्य हैं अशून्य भी, विज्ञान हैं एवं अविज्ञान भी, पञ्च भूत एवं अपञ्चभूत भी, विद्या हैं एवं अविद्या भी। श्रीमाता ही महाशक्ति होकर पराशक्ति आदिशक्ति हैं।

वेद काल से ही सनातन हिन्दू धर्म में शास्त्र अनुसार माता दुर्गा शक्ति की देवी है। दुर्गा की शक्ति ऊर्जा से समस्त ब्रह्मांड की रचना की गई है। यहाँ शिव पुरूष हैं एवं दुर्गा प्रकृति हैं। माता दुर्गा दुर्गति नाशिनी है एवं जगतधात्री भी हैं। शास्त्र में नवरात्रि के माध्यम से नव दिन एवं रात्रि माता दुर्गा की पूजा व उपासना का विधि विधान बताया गया है। देवी दुर्गा हर दुखों का नाश करके भक्तों को वरदान प्रदान करने वाली देवी है। नवरात्रि में उनकी पूजा श्रद्धा, भक्ति एवं आस्था से की जाती है। देवी के नव रूप नव प्रकार की सकारात्मक शक्तियाँ प्रदान करता हैं। निष्ठा सहित उनकी आराधना करने से हर एक प्राणियों का उद्धार हो जाता है। 

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नवरात्रि के प्रकार

प्रति वर्ष में चार नवरात्रि का पालन किया जाता है। इन चारों में दो गुप्त नवरात्रि हैं जो प्रधानतः साधक सम्प्रदाय के लोगों में प्रचलित है एवं दो नवरात्रि मुख्यत सभी लोग पालन करते हैं। 

चैत्र नव रात्रि

पहली नवरात्रि चैत्र प्रतिपदा से शुभारंभ होकर रामनवमी में पूर्ण होकर दशमी में समापन होती है।

शरद नव रात्रि

शरद ऋतु आश्विन मास शुक्लपक्ष में द्वितीय नवरात्र का पालन किया जाता है। नौ दिन में माता के नव रूप की आराधना पूर्ण कर शुक्ल विजया दशमी को समापन किया जाता है।

महात्म्य

कुष्मांडा माता का चतुर्थ रूप है एवं नवरात्रि में चौथे दिन यह स्वरूप की पूजा की जाती है। कुष्मांड का अर्थ है कुम्हड़ा। ध्यान से देखने पर ब्रह्मांड एक कुष्मांड के जैसा ही प्रतीत होता है। आदिशक्ति माता प्रसन्न होकर मंद मंद मुस्कुराते हुए सम्पूर्ण ब्रह्मांड की रचना कर दी। ब्रह्मांड का स्वरूप कुष्मांड जैसा प्रतीत होने पर माता यह नाम से विख्यात हुई।  

यह रूप में माता सृष्टिकारी, आनंदित, प्रसन्नचित्त एवं अष्टभुजा हैं। इनके हाथों में धनुष, बाण, कमल, चक्र, गदा, अमृतकलश, कमंडल एवं जपमाला है। माता कुष्मांडा का वाहन सिंह है। इनकी पूजा में कुम्हड़ा की भेंट चढाई जाती है।  माता के अधीन में “अनाहत” चक्र है।

माता यह रूप में सृष्टि की रचयिता हैं। माता की उपासना करने से हर शुभ सकारत्मक कार्य में सफलता प्राप्त होती है।

स्तुति मंत्र 

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कुष्मांडा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

मंत्र

सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे।

सर्वकार्य सिद्धि हेतु नवरूप स्तोत्र

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति च अष्टमम् ।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।

उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।

फलश्रुति

माता दुर्गा की आराधना से श्रद्धालु एवं भक्तों के सारे कष्टों का निवारण अनायास ही हो जाता है यह मानना चाहिए। जगतजननी माता अपने संतानों के लिए सदा तत्पर हैं, हमें केवल उनको सच्ची भावना से पुकारना है। 

जय माँ दुर्गा। ॐ नमः शिवाय। हरे कृष्ण हरे राम।

शारदीय दुर्गापूजा एवं नौ रात्रि 2021, जाने तिथि एवं समय।

माता के और रूपों को जाने
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