माता श्री महागौरी जगतजननी माता दुर्गा के अष्टम रूप एवं महात्म्य। Mata Shri Mahagauri

 श्री गणेशाय नमः। श्रीगायत्री नमः। श्री गुरुवे नमः।

जगतजननी माता दुर्गा के अष्टम रूप श्री महागौरी महात्म्य ।

श्री महागौरी

अश्विन शुक्लपक्ष अष्टमी तिथि के दिन माता के अष्टम रूप श्रीगौरी की आराधना होती है। गौरी शब्द का अर्थ है गोरी वर्ण वाली। माता महाशक्ति गौरी अर्थात महागौरी। श्रीमाता का यह परम् कल्याणकारी रूप है। साधक इनकी आराधना से अभीष्ट फल प्राप्त करते हैं।

सृष्टिकाल से, पश्चात वैदिक युगों से सनातन हिन्दू धर्म में शास्त्र अनुसार माता दुर्गा की उपासना चली आ रही है। दुर्गा की शक्ति ऊर्जा से समस्त ब्रह्मांड की रचना की गई है। यहाँ शिव पुरूष हैं एवं दुर्गा प्रकृति हैं। रामायण तथा महाभारत में देवी दुर्गा की पूजा का उल्लेख है। माता दुर्गा दुर्गति नाशिनी है एवं जगतधात्री भी हैं। सृष्टि उनकी शक्ति से चलती है। शास्त्र में नवरात्रि के माध्यम से नव दिन एवं रात्रि माता दुर्गा की पूजा व उपासना का विधि विधान बताया गया है। देवी दुर्गा हर दुखों का नाश करके भक्तों को वरदान प्रदान करने वाली देवी है। नवरात्रि में उनकी पूजा श्रद्धा, भक्ति एवं आस्था से की जाती है। देवी के नव रूप नव प्रकार की सकारात्मक शक्तियाँ प्रदान करता हैं। निष्ठा सहित उनकी आराधना करने से हर एक प्राणियों का उद्धार हो जाता है। 

नवरात्रि के प्रकार

प्रति वर्ष में चार नवरात्रि का पालन किया जाता है। इन चारों में दो गुप्त नवरात्रि हैं जो प्रधानतः साधक सम्प्रदाय के लोगों में प्रचलित है एवं दो नवरात्रि मुख्यत सभी लोग पालन करते हैं। 

चैत्र नव रात्रि

पहली नवरात्रि चैत्र प्रतिपदा से शुभारंभ होकर रामनवमी में पूर्ण होकर दशमी में समापन होती है।

शरद नव रात्रि

शरद ऋतु आश्विन मास शुक्लपक्ष में द्वितीय नवरात्र का पालन किया जाता है। नौ दिन में माता के नव रूप की आराधना पूर्ण कर शुक्ल विजया दशमी को समापन किया जाता है।

महात्म्य

माता दुर्गा का यह रूप निर्मल एवं ममतामयी हैं। यह रूप में माता के शरीर का वर्ण स्वर्ण की तरह उज्ज्वल  है। माता ने स्वेत वस्त्र धारण कर श्वेताम्बरी हैं। 

कथा अनुसार, माता पार्वती ने शिव को पति रूप में पाने हेतु तप करती रही जिस कारण माता का शरीर धूल मिट्टी से मलिन हो गया। महादेव ने स्वयं प्रकट होकर देवीमाता पर गंगा जल का वर्षण किया एवं उनको तप से जगाकर दिव्य तेज़ एवं गौर वर्ण, वरदान हेतु प्रदान किया। महादेव ने महागौरी को अपने स्त्री रूप में स्वीकार किया।

यह रूप में माता का वाहन वृषभ है। माता चतुर्भुजा है तथा उनके हाथों में त्रिशूल, अभय मुद्रा, वर मुद्रा एवं डमरू सुशोभित है।

माता की आराधना से विवाह से जुड़े दोषों का खंडन होता हैं एवं सिद्धियों की प्राप्ति सुलभ हो जाती है।

स्तुति मंत्र 

मंत्र: या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

मंत्र

ध्वन्दे वांछित कामार्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्। सिंहारूढाचतुर्भुजामहागौरीयशस्वीनीम्॥ पुणेन्दुनिभांगौरी सोमवक्रस्थितांअष्टम दुर्गा त्रिनेत्रम। वराभीतिकरांत्रिशूल ढमरूधरांमहागौरींभजेम्॥ पटाम्बरपरिधानामृदुहास्यानानालंकारभूषिताम्।

मंजीर, कार, केयूर, किंकिणिरत्न कुण्डल मण्डिताम्॥ प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांत कपोलांचैवोक्यमोहनीम्। कमनीयांलावण्यांमृणालांचंदन गन्ध लिप्ताम्।।

सर्वकार्य सिद्धि हेतु नवरूप स्तोत्र

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति च अष्टमम् ।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।

उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।

फलश्रुति

माता दुर्गा की आराधना से श्रद्धालु एवं भक्तों के सारे कष्टों का निवारण अनायास ही हो जाता है यह मानना चाहिए। जगतजननी माता अपने संतानों के लिए सदा तत्पर हैं, हमें केवल उनको सच्ची भावना से पुकारना है। 

जय माँ दुर्गा। ॐ नमः शिवाय। हरे कृष्ण हरे राम।

शारदीय दुर्गापूजा एवं नौ रात्रि 2021, जाने तिथि एवं समय।

माता के और रूपों को जाने
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माता चंद्रघंटा
माता कुष्मांड
स्कंदमाता

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